Air India Crash: क्या होता है Black Box ? मलबे में डिजिटल वीडियो रिकॉर्डर मिला, जांच में कैसे करता है मदद?

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What is Black Box and CVR: अहमदाबाद में हुए प्लेन क्रैश की जांच के लिए ब्रिटेन और अमेरिका दोनों ने मदद की पेशकश की है। ब्रिटेन की एएआईबी यानी एयर एक्सीडेंट्स इन्वेस्टिगेशन ब्रांच ने कहा कि वो भारत के विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो की मदद करेंगे। तो वहीं भारत ने भी इस केस की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति बनाई है। इस कमेटी का मकसद विमान सुरक्षा को और बेहतर बनाने का होगा।

इसी बीच फ्लाइट के मलबे में ब्लैकबॉक्स का डिजिटल वीडियो रिकॉर्डर मिला है। जो क्रैश की वजह पता लगाने में मदद करेगा। चलिए इस आर्टिकल में जानते है कि क्या है ये ब्लैक बॉक्स? कैसे ये और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं हादसे के कारणों का पता(What is Black Box and CVR) लगाने में।

Ahmedabad Plane Crash

प्लेन क्रैश के लिए विशेषज्ञों की टीम बनाई गई

भारत के नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू ने कहा, “अहमदाबाद में हुई दुखद घटना के बाद, अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (आईसीएओ) द्वारा निर्धारित अंतर्राष्ट्रीय प्रोटोकॉल के अनुरूप, विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो द्वारा औपचारिक जांच शुरू की गई है।” सरकार इसकी गहराई से जांच के लिए विशेषज्ञों की टीम बना रही है।

आपको बता दें कि ब्लैक बॉक्स और CVR प्लेन हादसों की जांच में काफी अहम भूमिका निभाते है। इससे हादसों के कारणों का पता लगाने में मदद मिलती है। जिससे भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। लेकिन उससे पहले ये जानना बेहद जरूरी है कि ब्लैक बॉक्स और CVR काम कैसे करते हैं। साथ ही जांच में इनकी भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती है।

क्या होता है ब्लैक बॉक्स?

जब भी कोई प्लेन दुर्घटना का शिकार हो जाता है। तो एक टीम को तुरंत ही भेजी जाता है। इस टीम का काम होता है ब्लैक बॉक्स यानी फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर और CVR जैसी चीजों की जांच करना। अमुमन ऐसे कैस की शुरुआती रिपोर्ट करीब तीन महीने के अंदर आ जाती है। CVR का काम प्लेन के कॉकपिट में सभी आवाजों को रिकॉर्ड करने का होता है। ब्लैक बॉक्स और सीवीआर के डेटा को करीब 10-15 दिन एनालाइज करने में लगते हैं। इसके बाद रिपोर्ट तैयार की जाती है। जिसमें हादसे के कारण और आगे सुधार के सुझाव भी दिए जाते हैं।

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जांच के लिए क्यों जरूरी होता है ब्लैक?

ब्लैक बॉक्स किसी भी प्लेन हादसे की जांच के लिए काफी अहम होता है। ये इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि खतरनाक से खतरनाक क्रैश में भी ये सुरक्षित रह सके। बिना इसके हादसे की वजह का पता लगाना मुश्किल होता है। ये तकनीकी खराबी, पायलट की गलती, मौसम या किसी हमले आदि सभी के बारे में जानकारी देता है।

कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) क्या है?

कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर यानी कि CVR एक छोटा सा डिवाइस होता है। जो सभी आवाजों को रिकॉर्ड करता है। ये ब्लैक बॉक्स का ही हिस्सा होता है। कलर की बात करें तो ये नारंगी होता है। इसमें पायलट और क्रू के बीच की बातचीत, यात्रियों की बातचीत आदि सभी को रिकॉर्ड करता है।

CVR समय और तारीख भी रिकॉर्ड करता

बता दें कि हर रिकॉर्डिंग के साथ सीवीआर समय और डेट को भी रिकॉर्ड करता है। जिससे जांच के समय ये मदद मिलती है कि घटना कब और कैसे हुई। ये विमान के पिछले हिस्से में लगा होता है। माना जाता है कि विमान का सबसे आखिर हिस्सा सबसे लास्ट में हादसे का शिकार होता है।

क्रैश भी नहीं होता नष्ट

इसे काफी मजबूत बनाया जाता है। ताकि आग, पानी, भारी दबाब आदि में ये सेफ रह सके। स्टील या टाइटेनियम के डिब्बे में ये बंद होता है। इसे इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि ये करीब 3,400 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी, समुद्र में 20,000 फीट की गहराई तक का दबाव और 5,000 G फोर्स तक का झटका सह सके।

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CVR के चार जरूरी हिस्से

दरअसल, ब्लैक बॉक्स दो हिस्सों में होता है—CVR यानी कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर और FDR यानी फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर। यहां हम बात कर रहे हैं CVR की जो पायलटों की बातचीत और कॉकपिट के भीतर की आवाज़ों को रिकॉर्ड करता है।

  • माइक्रोफोन: ये कॉकपिट में अलग-अलग जगह लगे होते हैं, जैसे पायलट के हेडसेट में, कॉकपिट की छत में या दूसरी जगहों पर। इनसे पायलटों की बातचीत, अलार्म और बैकग्राउंड नॉइज़ तक रिकॉर्ड होती है।
  • रिकॉर्डिंग सिस्टम: CVR में एक मेमोरी यूनिट होती है जो सारी ऑडियो फाइल्स डिजिटल तरीके से स्टोर करती है। पुराने जमाने में टेप हुआ करता था, लेकिन आज के CVR पूरी तरह डिजिटल होते हैं।
  • लूप रिकॉर्डिंग: इसका मतलब है कि CVR लगातार रिकॉर्ड करता रहता है, लेकिन सिर्फ आखिरी दो घंटे की रिकॉर्डिंग सेव होती है। पुरानी रिकॉर्डिंग अपने आप डिलीट होती जाती है।
  • पावर सप्लाई: CVR को प्लेन की इलेक्ट्रिसिटी से पावर मिलती है, लेकिन इसमें एक बैकअप बैटरी भी होती है जो हादसे के बाद थोड़ी देर तक रिकॉर्डिंग जारी रख सकती है।

CVR क्यों है इतना अहम?

  1. घटना से पहले का हर लम्हा रिकॉर्ड होता है – हादसे से पहले पायलटों के बीच क्या बातचीत हो रही थी, किस तरह के डिसीजन लिए जा रहे थे, क्या कोई तकनीकी परेशानी सामने आ रही थी—ये सब कुछ इसमें रिकॉर्ड होता है।
  2. ह्यूमन एरर की जांच – अगर कोई मानवीय गलती हुई, जैसे गलत बटन दबाना या एयर ट्रैफिक कंट्रोल की बात न मानना, तो CVR से यह साफ हो जाता है।
  3. तकनीकी खराबियों की आवाज़ें – जैसे इंजन में कोई अजीब सी आवाज़ आ रही हो, या कोई अलार्म बज रहा हो—ये सब भी इसमें कैद होता है।
  4. फ्यूचर सेफ्टी प्लानिंग – DGCA या FAA जैसी एजेंसियां CVR डेटा की जांच करके भविष्य की ट्रेनिंग और सुरक्षा नियमों में जरूरी बदलाव करती हैं।
  5. लीगल और इंश्योरेंस केसों में मददगार – CVR रिकॉर्डिंग कोर्ट या बीमा से जुड़ी जांचों में सबूत की तरह काम आती है।
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डेटा एनालिसिस में कितना वक्त लगता है?

ब्लैक बॉक्स का डेटा निकालकर उसे पढ़ना और समझना आसान काम नहीं होता। जांच एजेंसियां—जैसे DGCA, NTSB या BEA—ब्लैक बॉक्स और CVR से मिले डेटा को एनालाइज़ करने में आमतौर पर 10 से 15 दिन का वक्त लेती हैं। इस दौरान पायलटों और ATC के बीच हुई बातचीत भी सुनी जाती है ताकि समझा जा सके कि हादसे से पहले पायलट क्या महसूस कर रहे थे और किन स्थितियों से जूझ रहे थे।

सिर्फ CVR ही नहीं, प्लेन के मलबे, चश्मदीदों के बयान और रनवे के डेटा रिकॉर्डर भी जांच का हिस्सा होते हैं। जब हर एंगल से डेटा मिल जाता है। तब जाकर फाइनल रिपोर्ट तैयार होती है। जिसमें हादसे की वजह, ज़िम्मेदारी और आगे के लिए सुधार के सुझाव होते हैं।

नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू ने साफ किया है कि सरकार पूरी गंभीरता से विमानन सुरक्षा को लेकर काम कर रही है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि हादसे की जांच में जो भी जानकारी सामने आएगी उसके आधार पर सख्त कदम उठाए जाएंगे।

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