चमोली: बदरीनाथ धाम में शंख बजाना वर्जित है, धार्मिक मान्यता है कि यहां गाय भी ऊँची आवाज में नहीं रंभाती। आज के समय वाहनों से लेकर हर प्रकार का ध्वनी प्रदूषण वहां हो रहा है। बदरीनाथ धाम वर्तमान निर्माण कार्यों के चलते हर प्रकार की ध्वनियों से गरज रहा है। यहां निर्माण कार्यों में कई मशीनों का उपयोग हो रहा है।
Scientific reason behind Glacier disaster in Badrinath Chamoli
वैज्ञानिकों का मानना है कि बदरीनाथ धाम कि माणा घाटी बेहद संवेदनशील है। यहां मानवीय गतिविधियों का सीधा असर ग्लेशियरों पर पड़ता है। बदरीनाथ धाम में नर-नारायण, कंचन गंगा, नीलकंठ पर्वत, सतोपंथ, माणा और कुबेर पर्वत जैसे कई हिम से ढकी चोटियां हैं। बदरीनाथ मंदिर के ठीक ऊपर एक चट्टान स्थित है, जो मानव आंख की भौंह के समान दिखती है। जब भी वहां हिमस्खलन होता है, तो यह बामणी गांव की दिशा में डायवर्ट होता है।
बदरीनाथ में शंख ध्वनी वर्जित
वैज्ञानिकों का मानना है कि सदियों पहले इस स्थान का गहन अध्ययन करके बदरीनाथ मंदिर का निर्माण किया गया होगा। यह मंदिर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। बदरीनाथ धाम में शंख ध्वनि वर्जित होने का धार्मिक और वैज्ञानिक कारण भी हैं। धाम में शंख या अन्य किसी भी ध्वनी का असर यहां स्थित हिम शिखरों पर पड़ता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बदरीनाथ में शंख ध्वनी वर्जित इसीलिए है ताकि यहां स्थित हिमाच्छादित चोटियों से हिमस्खलन न हो।
साइलेंसर फाड़ यात्रा
वैज्ञानिकों ने इससे पहले भी कई बार इस ओर ध्यान देने की बात कही है कि यात्रा के समय कई तीर्थयात्री बाइकों के साइलेंसर फाड़कर ऐसी ध्वनियाँ उत्पन्न करते हैं जिसे स्थानीय इन्सान भी सहन नहीं कर पाता है। इनमें से कई लोग हॉर्न वर्जित स्थानों पर भी बेवजह हॉर्न बजाते रहते हैं। वैज्ञानिकों ने कहा है कि पर्यटन और विकास की दौड़ में उत्तराखंड अपना स्थायित्व खोने की कगार पर है