उत्तराखंड राज्य के गठन के लिए 1990 के दशक में चला आंदोलन और उसका प्रसिद्ध नारा “कोदो-झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे” आज भी याद किया जाता है। इस नारे और संघर्ष के कारण उत्तराखंड अलग राज्य बना, लेकिन अब राज्य के पहाड़ी जिलों में नौकरी करने के लिए युवाओं में सरकारी नौकरी करने की बिल्कुल भी रूचि नहीं देखी जा रही है। विशेष रूप से शिक्षक भर्ती में एक चिंता की बात यह है कि जो शिक्षक पहाड़ी जिलों में नियुक्त हो रहे थे, वे जल्द ही नौकरी छोड़ रहे हैं और सुविधाजनक जिलों जैसे देहरादून, नैनीताल और हरिद्वार में स्थानांतरित होने की कोशिश कर रहे हैं।
हाल में मिले थे नियुक्ति पत्र –
प्रदेश में सहायक अध्यापक के 2,906 पदों पर भर्ती प्रक्रिया चल रही है, और शिक्षा निदेशालय ने अब तक 2,296 शिक्षकों का चयन किया है। इन शिक्षकों में से अधिकतर को नियुक्ति पत्र मिल चुके हैं, जबकि बाकी के लिए काउंसलिंग का पांचवां चरण जारी है। हालांकि, पहाड़ी जिलों में जहां इन पदों के लिए अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था, वहां शिक्षक कार्यभार ग्रहण करने के बाद भी नौकरी छोड़ने लगे हैं। एक और बेरोजगारी का ऐसा आलम है दूसरी ओर पहाड़ में नौकरी ही नहीं करना चाहते हैं सरकारी शिक्षक ऐसे में बेरोजगार युवक- युवतियां जरूर सोचती होंगीं काश यह नौकरी हमें मिल जाती।
14 नौकरी छोड़ने वाले शिक्षकों की जानकारी मांगी –
अपर शिक्षा निदेशक आरएल आर्य ने बताया कि विभाग ने उन शिक्षकों की जानकारी मांगी है जिन्होंने पहाड़ी जिलों में कार्यभार ग्रहण करने के बाद नौकरी छोड़ दी है। अब तक रुद्रप्रयाग जिले में छह और पौड़ी जिले में आठ शिक्षक नौकरी छोड़ चुके हैं। उत्तरकाशी जिले में इस तरह के शिक्षक नहीं हैं, जबकि अन्य जिलों से इस संबंध में जानकारी प्राप्त की जा रही है। यह स्थिति शिक्षा विभाग के लिए एक चुनौती बन गई है, क्योंकि पहाड़ी क्षेत्रों में शिक्षकों की नियुक्ति और उनका स्थायित्व सुनिश्चित करना मुश्किल हो रहा है