चतुर्थ केदार रुद्रनाथ मंदिर के कपाट आज शीतकाल के लिए बंद हो गए हैं। आज बृहस्पतिवार को ब्रह्म मुहूर्त में शीतकाल के लिए रूद्रनाथ मंदिर के कपाट विधि-विधानपूर्वक बंद कर दिए गए हैं।
शीतकाल के लिए बंद हुए रुद्रनाथ मंदिर के कपाट
बृहस्पतिवार को ब्रह्म मुहूर्त में चतुर्थ केदार रुद्रनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के बंद हो गए हैं। अब भगवान अपने शीतकालीन गद्दीस्थल में भक्तों को दर्शन देंगे। आज सैकड़ों भक्तों की मौजूदगी में मंदिर के पुजारी वेद प्रकाश भट्ट ने विधि-विधान पूर्वक मंदिर के कपाट बंद करवाए।
देर शाम तक भगवान शीतकालीन प्रवास में हो जाएंगे विराजमान
बता दें कि भगवान रुद्रनाथ जी की उत्सव विग्रह डोली शीतकालीन गद्दीस्थल गोपीनाथ मंदिर गोपेश्वर के लिए रवाना हो गई है। भगवान रुद्रनाथ जी की उत्सव विग्रह डोली आज 18 किलोमीटर दूरी तय करेगी। इसके बाद भगवान रूद्रनाथ आज ही देर शाम तक शीतकालीन गद्दीस्थल में विराजमान हो जाएंगे।
यहां होती है भगवान शिव के मुख की पूजा
उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले में रुद्रनाथ धाम स्थापित है, जिसे चौथा केदार कहा जाता है। रुद्रनाथ में शिव के एकानन रूप यानी मुख की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत के समय में पांडवों के द्वारा किया गया था। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव की पूजा नील कंठ रूप में की जाती है।
ऐसा कहा जाता है कि कहते हैं यहां शिव के बैल रुपी अवतार का मुख प्रकट हुआ था। इसलिए इस शिवलिंग को स्वयंभू शिवलिंग के नाम से भी जाना जाता है। इस स्वयंभू शिवलिंग की आकृति मुख जैसी है जिसकी गर्दन टेढ़ी है। ये शिवलिंग एक प्राकृतिक शिवलिंग है जिसकी गहराई का आज तक पता नही लगाया जा सका है। मंदिर के आस-पास कई छोटे मंदिर भी स्थापित हैं जो पांचों पांडवों, माता कुंती और द्रौपदी को समर्पित हैं।