महंगी किताबें और यूनिफार्म के नाम पर ‘लूट’ रहे निजी स्कूल, इन नियमों का नहीं हो रहा पालन

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नई दिल्ली: राजधानी के निजी स्कूलों हर साल की तरह इस साल भी अभिभावकों पर महंगी किताबें और यूनिफार्म खरीदने का दबाव बना रहे हैं। महंगी ट्यूशन फीस, एनुअल फीस, डेवलेपमेंट फीस देने के बाद स्कूलों से ही महंगी किताबें, स्टेशनरी और यूनिफार्म खरीदने का दबाव सीधे-सीधे अभिभावकों की जेब पर पड़ रहा है। इससे उनका पूरा बजट ही गड़बड़ा रहा है।

शिक्षा निदेशालय की चुप्पी से अभिभावकों की जेब हो रही ढीली
अभिभावकों को होने वाली पर परेशानियों की शिकायतों के बाद भी कोई सुध नहीं ली जा रही है। जबकि खुले तौर पर यह काम हो रहा है। शिक्षा निदेशालय की चुप्पी से निजी स्कूलों की मनमानी और अभिभावकों की परेशानी बढ़ रही है।

अभिभावकों का कहना है कि निदेशालय की सह के कारण ही स्कूल प्रत्येक वर्ष मंजूरी न मिलने के बावजूद फीस में बढ़ोत्तरी करते रहते हैं। हद तो ये है कि स्कूलों के अंदर बकायदा स्टाल लगवाकर विशिष्ट विक्रेताओं की किताबें और यूनिफार्म बेची जा रही है।
निजी स्कूलों की मनमानी पर नहीं लग रही लगाम
स्कूलों की इस मनमानी का दिल्ली शिक्षा मंत्रालय ने बीते वर्ष संज्ञान लेकर ऐसे स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की बात भी कही थी, लेकिन शैक्षणिक सत्र खत्म होने के बाद ऐसी कोई कार्रवाई नजर नहीं आई जो निजी स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगा सके।

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निदेशालय में इस संबंध में कार्रवाई के नाम पर कागजी खानापूरी जरुर हुई है लेकिन ऐसी कोई कार्रवाई नहीं हुई है जो स्कूलों की इस मनमानी के सामने नजीर साबित हो सके। नतीजतन स्कूलों में विभिन्न तरीकों से धड़ल्ले से लूट मचाई जा रही है।

दिल्ली सरकार ने अभिभावकों की शिकायतों का संज्ञान लेते हुए कहा था कि शिक्षा का उद्देश्य देश का भविष्य संवारना होना चाहिए, न कि पैसा कमाना। सरकार ने कहा था निजी स्कूल अभिभावकों को विशिष्ट विक्रेताओं से किताबें और यूनिफार्म खरीदने के लिए मजबूर करना बंद करें या फिर कड़ी कार्रवाई का सामना करने को तैयार रहे।

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नियमों के उल्लंघन को लेकर कार्रवाई के दिए थे निर्देश
निदेशालय के नियमों का पालन नहीं करने वाले स्कूलों के खिलाफ जांच करने और नियमों के उल्लंघन के मामले में कार्रवाई शुरू करने के निर्देश भी दिए गए थे और कहा गया था कि शिकायत मिलने के बाद स्कूलों को तुरंत कारण बताओ नोटिस जारी किया जाए और जो कार्रवाई की जाए उसकी साप्ताहिक रिपोर्ट पेश की जाए, लेकिन अभी तक ऐसी कोई कार्रवाई सामने नहीं आई है जो स्कूलों की इस मनमानी पर लगाम लगा सके।

उल्लेखनीय है कि निदेशालय के नियम अभिभावकों को ये स्वतंत्रता देते हैं कि वे अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी जगह से बच्चों के लिए किताबें व ड्रेस खरीद सकें। अगर इन नियमों की कोई स्कूल अवहेलना करता है कि ऐसे स्कूलों के खिलाफ निदेशालय को अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी होती है।

ये हैं शिक्षा निदेशालय के नियम
शिक्षा निदेशालय के नियमों के तहत निजी स्कूलों को नए सत्र में प्रयोग में आने वाले किताबों व अन्य स्टेशनरी की कक्षावार सूची नियमानुसार स्कूल की वेबसाइट और विशिष्ट स्थानों पर पहले से ही प्रदर्शित करनी होती है। ताकि अभिभावकों को इसके बारे में जागरूक किया जा सके।
इसके अलावा स्कूल को अपनी वेबसाइट पर स्कूल के नजदीक के कम से कम पांच दुकानों का पता और टेलीफोन नंबर भी प्रदर्शित करना होता है जहां से अभिभावक किताबें और यूनिफार्म खरीद सकें। साथ ही स्कूल अभिभावक को किसी भी विशिष्ट विक्रेता से इन चीजों को खरीदने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।
माता-पिता अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी दुकान से किताबें और यूनिफार्म खरीद सकते हैं। साथ ही शिक्षा निदेशालय के इन नियमों में ये भी स्पष्ट किया गया है कि कोई भी निजी स्कूल कम से कम तीन साल तक स्कूल यूनिफार्म के रंग, डिजाइन व अन्य चीजों को नहीं बदल सकता है।

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