उत्तराखंड में दीपावली के 11 दिन बाद भी दिपावली का त्यौहार मनाया जाता है। ये दीपावली गढ़वाल में मनाई जाती है और इसे इगास बग्वाल कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इगास बग्वाल क्यों मनाई जाती है ? और दीपावली के 11 दिन बाद ही क्यों मनाई जाती है ?
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कैसे हुई थी इगास मनाने की शुरूआत
इगास का त्यौहार गढ़वाल में धूमधाम से मनाया जाता है। इगास के त्यौहार से वीर माधो सिंह भंडारी की कहानी जुड़ी है। कहा जाता है कि एक बार गढ़वाल के राजा महिपति शाह ने अपने सेनापति माधो सिंह भंडारी को तिब्बत के राजा से युद्ध करने भेजा। माधोसिंह अपने दल बल समेत तिब्बत के राजा से युद्ध करने चले गए।
इगास बग्वाल EFGAS BAGWAL
माधोसिंह ने युद्ध तो जीत लिया लेकिन इसकी सूचना गढ़वाल रियासत तक नहीं पहुंच पाई और दीपावली आ गई। दीपावली तक कोई सूचना ना मिलने के कारण अफवाहें फैल गई कि गढ़वाली सेना युद्ध में मारी गई। राजा ने भी मान लिया और ऐलान कर दिया कि कोई भी रियासत में दिपावली नहीं मनाएगा।
दीपावली के 11 दिन बाद पहुंचे युद्ध जीतकर
शोक में डूबे गढ़वाल में दीपावली नहीं मनाई गई। शोक में डूबे पूरे गढ़वाल के लोगों में खुशी की लहर तब आई जब सूचना मिली की तिब्बत युद्ध में माधो सिंह भंडारी की जीत हुई है और वो जल्द ही सेना के साथ श्रीनगर पहुंच जाएंगे। जिसके बाद राजा ने ऐलान करवाया कि अब दीपावली तभी मनाई जाएगी जब माधो सिंह भंडारी श्रीनगर पहुंचेंगे। दीपावली के 11 दिन बाद उन्होंने श्रीनगर में कदम रखा और इस दिन सारी रियासत को दुल्हन की तरह सजाया गया और रियासत में दीपावली मनायी गई। तभी से गढ़वाल में इगास बग्वाल की शुरूआत हुई।
Igas Festival 2023
गढ़वाल में देर से मिली थी राम के अयोध्या लौटने की सूचना
एक मान्यता के अनुसार कहा ये भी जाता है की गढ़वाल में भगवान राम के अयोध्या लौटने की खबर 11 दिन बाद मिली थी। इसलिए यहां पर ग्यारह दिन बाद दीवाली मनाई जाती है। आपको बता दें की इगास बग्वाल की एकादशी को देव प्रबोधनी एकादशी, ग्यारस का त्यौहार और देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है।
इगास बग्वाल को खेला जाता है भैला
इगास के त्यौहार के दिन और चौथी बग्वाल के दिन भैला खेलने का खास रिवाज है। अगर आप पहाड़ों के आंचल से ताल्लुक रखते हैं तो आपने अंधेरे में पहाड़ों को जगमगा देने वाली ये रोशनी जरूर देखी होंगी। पहाड़ों पर इगास बग्वाल के दिन आतिशबाजी नहीं होती बल्कि इस दिन सभी भैला खेलते हैं।