मोदी सरनेम केस में राहुल गांधी को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने सजा पर लगाई रोक

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मोदी सरनेम मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए राहुल की सजा पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष का पक्ष वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने रखा। उन्होंने कहा कि शिकायकर्ता पूर्णेश मोदी का मूल उपनाम मोदी नहीं है। उन्होंने बाद में यह उपनाम अपनाया। कांग्रेस नेता ने अपने भाषण के दौरान जिन लोगों का नाम लिया। उनमें से एक ने भी मुकदमा नहीं किया। इस समुदाय से सिर्फ बीजेपी के पदाधिकारी मुकदमा कर रहे हैं। वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जज इसे नैतिक अधमता से जुड़ा अपराध मानते हैं। यह गैर-संज्ञेय और जमानत अपराध है। मामले में कोई अपहरण, रेप या मर्डर नहीं किया गया है। यह नैतिक अधमता से जुड़ा अपराध कैसे बन सकता है। उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र में हम असहमति रखते हैं। राहुल गांधी कट्टर अपराधी नहीं है। राहुल पहले ही संसद के दो सत्रों से दूर रह। इस दौरान कोर्ट ने राहुल गांधी के विरोध में दलीलें दे रहे शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी के वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी से पूछा कि अदालत ने अधिकतम सजा देने के क्या ग्राउंड दिए हैं। कम सजा भी तो दी जा सकती थी। उससे संसदीय क्षेत्र की जनता का अधिकार भी बरकरार रहता। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को सुनाई सजा के फैसले पर रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा कि जब तक अपील लंबित रहेगी, तब तक सजा पर रोक बरकरार रहेगी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद राहुल गांधी अब संसद सत्र में हिस्सा ले सकेंगे। बता दें कि 23 मार्च को निचली अदालत ने राहुल को दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई थी। इसके अगले ही दिन राहुल की लोकसभा सदस्यता चली गई थी। राहुल की अपना सरकारी घर भी खाली करना पड़ा था। निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ दो अप्रैल को राहुल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जस्टिस प्रच्छक ने मई में राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद सात जुलाई को कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया और राहुल की याचिका खारिज कर दी थी। गुजरात हाइकोर्ट ने राहुल की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि राजनीति में शुचिता’ अब समय की मांग है। जनप्रतिनिधियों को साफ छवि का होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा था कि दोषसिद्धि पर रोक लगाना नियम नहीं, बल्कि अपवाद है। इसे विरले मामलों में ही इस्तेमाल किया जाता है। जस्टिस प्रच्छक ने 125 पेज के अपने फैसले में कहा था कि राहुल गांधी पहले ही देशभर में 10 मामलों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में निचली अदालत का आदेश न्यायसंगत, उचित और वैध है। राहुल ने अपने हलफनामे में कहा कि याचिकाकर्ता को बिना किसी गलती के माफी मांगने के लिए मजबूर करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया का उपयोग करना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इस न्यायालय द्वारा इसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। हलफनामे में कहा गया कि याचिकाकर्ता ने हमेशा कहा है कि वह अपराध का दोषी नहीं है। दोषसिद्धि टिकाऊ नहीं है। अगर उसे माफी मांगनी होती और समझौता करना होता तो वह बहुत पहले ही ऐसा कर चुके होते। राहुल गांधी ने कहा कि उनका मामला असाधारण है, क्योंकि अपराध मामूली है और एक सांसद के तौर पर अयोग्य ठहराए जाने से उन्हें अपूरणीय क्षति हुई है। इसलिए प्रार्थना की जाती है कि राहुल गांधी की सजा पर रोक लगाई जाए, जिससे वह लोकसभा की चल रही बैठकों और उसके बाद के सत्रों में हिस्सा ले सकें। उन्होंने दावा किया कि रिकॉर्ड में ‘मोदी’ नाम का कोई समुदाय या समाज नहीं है। केवल मोदी वणिका समाज या मोध घांची समाज ही अस्तित्व में है। इसलिए समग्र रूप से मोदी समुदाय को बदनाम करने का अपराध नहीं बनता है।

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