कोरना काल से उत्तराखंड के नौजवानों का बुरा हाल

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हल्द्वानी:- कोरोना महामारी के चलते बेरोजगारी इस कदर बढ़ गई है कि लोगों का दो रोटी का गुजारा होना भी मुश्किल हो चुका है। पढ़े लिखे नौजवान नौकरी की तलाश में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं शायद उन्होंने कभी सपने में भी ऐसा नहीं सोचा होगा कि उन्हें पढ़ाई लिखाई डिग्री डिप्लोमा लेने के बाद सड़कों पर रेहड़ी पटरी लगानी पड़ सकती हैं ऐसा ही हाल उत्तराखंड के हर पढ़े-लिखे नौजवान जोकि जगह जगह या तो सड़क किनारे पटरी पर रेडीमेड कपड़े बेचते नजर आ रहे हैं या फिर होटलों में बर्तन मल रहे हैं। इसमें कई नौजवान पढ़ाई करने के बावजूद आईटीआई या डिप्लोमा होल्डर होने के बाद भी नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। उनमें कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जिनके मां बाप ने मेहनत मजदूरी करके उनको पढ़ा लिखा कर काबिल तो बना दिया लेकिन उनकी दुर्दशा देखकर वह इस कदर परेशान हो चुके हैं कि वह खुद ही नहीं समझ पा रहे हैं जो पैसा बच्चों की पढ़ाई लिखाई में खर्च किया शायद वही पैसा आज जमा किए होते तो कम से कम बुढ़ापे में वह सहारा तो बनता लेकिन जिन बच्चों के लिए उन्होंने अपना सब कुछ त्याग दिया सफलता हासिल न कर पाने के कारण उन्हें वो खुशी नहीं मिल पाई इसके लिए उन्होंने सपने देखे थे। रही बात स्वरोजगार की जो पैसा उनके पास था उन्होंने बच्चों की पढ़ाई लिखाई में खर्च कर दिया अब स्वरोजगार के लिए पैसा कहां से लाएं। सरकार दावा करती है कि उनके द्वारा स्वरोजगार के लिए ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है जिसके पास कुछ भी ना बचा हो क्या उसे बैंक लोन देगा। बैंकों की फॉर्मेलिटी इतनी है कि एक गरीब लाचार व्यक्ति को बैंक लोन दे ही नहीं सकता। वास्तविकता तो यह है कि अगर बैंक की इतनी फॉर्मेलिटीज करने के लिए उनके पास पैसा होता तो खुद ही स्वरोजगार कर सकते थे। ऐसे में नौजवानों के साथ हो रहे अन्याय को ध्यान में रखकर सरकार कोई ठोस योजना बनाएं तभी नौजवानों का भला हो सकता है अन्यथा उनका भविष्य क्या होगा समझ से परे है।

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