जिरेनियम की खेती लाभदायक : डा. त्रिवेदी

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सीमैप में आयोजित दो दिवसीय किसान गोष्ठी का समापन

पंतनगर। केंद्रीय औषधि एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) पंतनगर में आयोजित दो दिवसीय किसान गोष्ठी मंगलवार को संपन्न हो गई। यहां सीमैप लखनऊ के निदेशक डा. प्रबोध कुमार त्रिवेदी ने किसानों से जिरेनियम व मेंथा की ख्ेाती अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यह पारंपरिक खेती से अलावा औषधीय व सगंध पौधों की खेती लाभप्रद बताया। डा. त्रिवेदी ने कहा कि आज देश में जितनी खपत है, उसका मात्र दस प्रतिशत ही जिरेनियम तेल का उत्पादन होता है। इसके चलते लगभग 90 प्रतिशत जिरेनियम तेल विदेशों से आयात किया जाता है। जिससे इसका बाजार भाव 15-20 हजार रूपए प्रति किलोग्राम तक होता है, जो समय-समय पर घटता व बढ़ता रहता है। सीमैप ने इसकी विभिन्न प्रजातियां विकसित की हैं। वैज्ञानिक डा. वीआर सिंह ने कहा कि औस पौधों की खेती मैदानी, तराई, भावर और पर्वतीय क्षेत्रों में प्रत्येक भौगोलिक परिस्थिति में की जा सकती है। बताया कि मैदान में मेंथा व तुलसी, भावर में जिरेनियम व सतावर, पर्वतीय क्षेत्रों में गुलाब तथा विदर्भ एवं बुंदेलखंड जैसे सूखे इलाकों में खस व पामारोजा की खेती की जा सकती है। वैज्ञानिक डा. आरके उपाध्याय ने कहा कि भारत मेंथा ऑयल के उत्पादन में विश्व में पहले स्थान पर आ गय है। यदि किसान जिरेनियम की खेती अपनाएं तो निश्चित ही हमारी जिरेनियम तेल के लिए अन्य देशों पर निर्भरता खत्म होगी। पंतनगर अनुसंधान केंद्र प्रभारी डॉ. आरसी पड़लिया ने कहा कि परंपरागत गेहूं, धान, गन्ना आदि की खेती से किसानों को जीवनयापन भर की ही आय हो पा रही है। इन फसलों के साथ या इनके बीच में औस पौधों की खेती से किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि और उनके जीवन स्तर को सुधारने में आधारभूत सफलता मिल सकती है। इस दौरान डा. सौदान सिंह, डा. संजय कुमार, डा. आरएस वर्मा, डा. दीपेंद्र कुमार, डा. राकेश कुमार, डा. वैंकटेश केटी व अमित चौहान आदि ने भी औस की खेती को लाभकारी बताते हुए किसानों को इसके लिए प्रोत्साहित किया। साथ ही चयनित 150 किसानों को जिरेनियम के पौधे व जीएपी-388 परियोजना के तहत लगभग 10 क्विंटल जड़ें वितरित की गईं।

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