चिकित्सा स्वास्थ्य शिक्षा सड़क एवं रोजगार को लेकर निरंतर खोखले होते जा रहे हैं माननीय के दावे।

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विकास के मामलों में अपनी बदहाली की दास्तां बयां करते लालकुआं विधानसभा के प्रमुख मुद्दे।
अस्पताल है संसाधन नही।
स्कूल है रिजल्ट नही।
सड़क बन गई हैं जान का खतरा।
रोजगार है ब्यस्थाएं नहीं।
हल्दूचौड़।
2022 के विधान सभा चुनाव में बेहतर चिकित्सा स्वास्थ्य शिक्षा सड़क व रोजगार मुहैया कराए जाने के दावों को लेकर जनता के सिरमौर बने माननीय के दावे दिन प्रति दिन खोखले होते दिखाई दे रहे हैं।
बात अगर चिकित्सा सेवाओं की की जाय तो
बेहतर चिकित्सा मुहैया कराए जाने को लेकर क्षेत्रवासियों को पिछले 9 साल के इंतजार के बाद हॉस्पिटल का भवन तो मिल गया है, लेकिन डॉक्टरों की तैनाती और व्यवस्थाएं ना होने से लोगों को अभी भी इसका लाभ नहीं मिल रहा है. जिससे लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने का दावा करने वाली सरकार की पोल खुल रही है।


गौरतलब है कि 2014 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी, वित्त मंत्री इंदिरा हृदयेश और श्रम मंत्री हरिश्चंद्र दुर्गापाल ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की नींव रखने के बाद अस्पताल के निर्माण का जिम्मा ब्रिडकुल को सौंपा था 9 साल बाद 7 करोड़ 90 लाख रुपए की कीमत से अस्पताल का भवन बनकर स्वास्थ्य महकमे को हस्तांतरित किया जा चुका है हालाकि अस्पताल का निर्माण 3 साल के भीतर में पूरा होना था किंतु 9 साल बाद बमुश्किल बने अस्पताल में आज भी ताला लटका हुआ है क्योंकि अस्पताल के लिए ना ही डॉक्टरों की, ना उपकरण की व्यवस्था हो पा रही है। क्षेत्रवासियों का कहना है कि सरकार लोगों के स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह बनी हुई है.
अब अगर बात करें राष्ट्रीय राजमार्ग की तो विधानसभा के प्रवेशद्वार लालकुआं से तीनपानी तक अधर में लटके निर्माण कार्य के कारण राहगीरों के साथ साथ यात्रियों को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सड़क पर बने विशालकाय गड्ढों के कारण आए दिन दुर्घटनाओं में इजाफा हो रहा है। अधर में लटके निर्माण कार्य को शीघ्र कराने की दिशा में भी जिम्मेदार मौन साधे हुए हैं। अब अगर रोजगार की दिशा में बात की जाय तो यहां की लाइफ लाइन मानी जाने वाली गौला नदी जिससे की हजारों बेरोजगार रोजी रोटी कमाकर अपना व अपने परिवार का जीवनयापन करते चले आ रहे थे इस पर भी इस खनन सत्र में शुरू से ही संकट के बादल मडराते दिखाई दिए खनन शुरू होने से लेकर आज तक कारोबारियों समेत नदी कार्य करने वाले मजदूरों में भ्रम की स्थिति बनी रही है हालत ये हैं कि जिम्मेदार भी तय नहीं कर पा रहे हैं कि नदी कब तक चलेगी ऐसा माना जा रहा है कि गौला नदी में खनन को लेकर बड़ा पेंच फंस गया है । जहां एक ओर गोला नदी में खनन की समय सीमा 30 जून तक बढ़ाए जाने की पूरी तैयारी हो गई थी और जनप्रतिनिधि इसे अपनी उपलब्धि मान सोश्यल मीडिया समेत तमाम माध्यमों से इसे अपनी बड़ी उपलब्धि मान वाहवाही लूट रहे थे अब मौन साधे हुए हैं और वन विभाग ने मामले को लेकर हाथ खड़े कर दिए हैं। तर्क दिया जा रहा है कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के आदेशों के अनुसार हमेशा की तरह गौला नदी में खनन का कार्य हर साल 31 मई को ही बंद हो जाता है।किंतु इस बार खनन सत्र की शुरुवात में ही इससे जुड़े हजारों ब्यवसायियों को कड़ी जद्दोजहद से जूझना पड़ा था जिसके चलते तकरीबन तीन माह बाद बमुश्किल नदी में खनन कार्य शुरू हो पाया था और सरकार ने जून अंत तक खनन किए जाने के बकायदा आदेश जारी कर दिए थे जिसके चलते यहां खनन में लगे सात हजार के करीब वाहनों के स्वामियों ने जून तक अपने वाहनों का रोड टैक्स परमिट फिटनेस आदि कराकर सरकार के खजाने को भर दिया था किंतु अचानक मई में ही नदी बंद किए जाने से वाहन स्वामियों को दोहरीमार झेलनी पड़ रही है। इसके अलावा तमाम कई समस्याएं भी है जिनसे लोगों को दोचार होना पड़ रहा है किंतु जिमेदारों को इससे कोई सरोकार नहीं दिखाई दे रहा है।

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