महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ की पूजा समस्त संकटों को दूर करती है

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हमारी भारतीय सँस्कृति की अपनी अनूठी विशेषता है कि यहाँ के प्रत्येक महीने मेँ किसी न किसी पर्व को मनाने का विवरण मिलता है। इसी कारण हमारे देश को त्योहारोँ का देश कहा जाता है। यहाँ मुख्य रूप से वैशाखी, नवरात्रि, दशहरा, दीपावली, मकर संक्रांति, ईद, क्रिसमस आदि त्योहारोँ की अद्भुत छटा देखने को मिलती है। इन त्योहारोँ में महाशिवरात्रि का पर्व अपने आप मेँ कल्याण कारी मार्ग करता है। हिन्दू पँचाग के अनुसार यह त्योहार प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। वैसे तो प्रत्येक मास मेँ शिवरात्रि आती है, लेकिन यह पर्व महाशिवरात्रि के रूप में उदघटित होने के कारण इसका महत्व बढ जाता है। शिव भगवान को कल्याण, मँगलमयी, महादेव, शंकर आदि अनेकोँ नामों से भी जाना जाता है। शिव भगवान की आराधना करने से कल्याण कारी भावना का प्रकटीकरण होता है। सभी देवताओँ मेँ शिव भगवान को अत्यन्त दयालू माना जाता है। सामान्य नाम का उच्चारण करने मात्र से भक्तोँ का कल्याण कर देते हैं। शिव मेँशिध्वनि का अर्थ ऊर्जा का प्रतीक है। इस आधार पर केवल शिव का ही प्रयोग करेँगे तो असन्तुलन की स्थिति आ जाती है। दूसरा व शब्द है जिसका अर्थ नाम से लिया गया है। जो प्रवीणता के भाव को स्पष्ट करता है। इस प्रकार शिव नाम मेँ एक शब्द ऊर्जा देता है। दूसरा उसे नियन्त्रित करता है।
इस वर्ष शिव रात्रि का यह पुनीत त्योहार १मार्च मंगलवार सुबह ३बजकर १६ मिनट से शुरू होकर २मार्च सुबह १०बजे तक रहेगा। रात्रि की पूजा शाम को ६बजकर २२मिनट से शुरू होकर रात 12बजकर ३३मिनट तक रहेगी। शिवरात्रि मेँ चारों पहर पूजा करने का विधान है। विद्येश्वर संहिता में शिव भगवान की महिमा का गुणगान इस प्रकार से किया गया है -वे धन्य और कृतार्थ हैँ। उन्हीं का शरीर धारण करना भी सफल है, और उन्होंने ही अपने कुल का उद्धार कर लिया है। जो शिव की उपासना करते हैं। शिव का नाम विभूति, भस्म, तथा रुद्राक्ष, ये तीनों त्रिवेणी के समान परम पुण्य काल वाले माने गये हैं। भगवान शिव का नाम गंगा है। विभूति यमुना मानी गयी है। रुद्राक्ष को सरस्वती कहा गया है। इन तीनों की सँयुक्त त्रिवेणी समस्त पापोँ का नाश करने वाली है। सम्पूर्ण वेदोँ का अवलोकन करके पूर्ववर्ती महर्षियोँ ने यही निश्चित किया है कि भगवान शिव के नाम का जप सँसार सागर को पार करने का सर्वोत्तम उपाय है। शिव रात्रि के विषय मेँ यह माना जाता है इस दिन भगवान शँकर रूद्र के रूप में प्रजा पिता व्रह्मा के शरीर से अवतरित हुये। इनका तीसरा नेत्र प्रलयकारी है। इस स्थिति में तांडव करते हुए सृष्टि का विनाश करते हैं। इस दिन शिव शक्ति का भी परस्पर मिलन माना जाता है। अर्थात् माता पार्वती और शिव भगवान का विवाह हुआ। भगवान शँकर भी इस रात्रि से असीम स्नेह करते हैं। ईशान संहिता में कहा गया है -फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को अधिदेव भगवान शिव करोडो सूर्य के समान प्रभा वाले लिँग रूप में प्रकट हुये। ज्योतिष शास्त्र के आधार पर फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि मेँ चन्द्रमा सूर्य के समीप होता है। उस समय जीवन रुपी चन्द्रमा का शिव रुपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है। इस पर्व पर शिव पूजन करने से सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। शिव भगवान को निराकार निर्गुण परम तत्व के रुप मेँ जाना जाता है। यही परम निर्गुण स्वरुप शिवरात्रि के दिन सगुण साकार के रुप मेँ अवतरित हो जाता है। यही अवतरण की रात्रि महा शिव रात्रि कहलाती है। इस दिन के विषय मेँ शास्त्रोँ मेँ क्ई आख्यान देखने को मिलते हैं। इस दिन शिव व पार्वती का विवाह हुआ था। शिव जी ने इसी दिन कालकूट नामक विष पीकर के राक्षसोँ को समुद्र मंथन में निकले हुये अमृत को दूर रख करके देवताओँ को अभय प्रदान किया।
शिव भगवान में कल्याण का भाव समाया हुआ रहता है। सामान्य नाम लेने से भी भक्त के जीवन में परिवर्तन आ जाता है। महाशिवरात्रि को रात्रि में मनाने का कारण यह भी है कि रात्रि को तमोगुण का प्रतीक माना जाता है। शिव शक्ति का यह स्वरुप है जिसके सामने कोई भी वस्तु टिक नहीं सकती है। यह रात्रि मनुष्य के अन्दर ही सम्पूर्ण तामसिक वृत्तियो़ँ को समाप्त कर देती है। गीता में लिखा है -या निशा सर्वभूतानाँ तस्याँ जागृति संयमी, उपवास के द्वारा इन्द्रियोंऔर मन पर नियन्त्रण करने वाला संयमी व्यक्ति ही रात्रि मेँ जागकर अपने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रयास रत रहता है। रात्रि का समय ही शिव भक्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। व्रत मेँ शिव भगवान की पूजा करने के लिये फल, पुष्प, गन्ध, वेल पत्र, धतूरा, धूप, दीप, नैवेद्य आदि की आवश्यकता होती है। दूध, दही, घी, शहद, और चीनी मिलाकर पँचामृत से शिव भगवान का स्नान कर जलधारा से अभिषेक करना चाहिए। ग्यारह सौ बार ऊँ नम:शिवाय का जप करके ही भगवान शिव की आरती तथा परिक्रमा करनी चाहिए। अन्त में निश्चल हृदय से इस प्रकार से प्रार्थना करनी चाहिए –
नियमों यो महादेव कृतश्चैव त्वदाज्ञया।
विसृज्यते मया स्वामिन व्रत जातमनुन्तमम।।
व्रतेनातेत देवेश यथाशक्ति कृतेन च।
सँतुष्टो भाव शवार्द कृपाँ कुरु ममोपरि।। -शिव पुराण-कोटि रुद्र सँहिता
अर्थात हे महादेव आज्ञा से मैँने जो व्रत लिया ।हे स्वामिन वह परम ब्रत पूर्ण हो गया। अत: अब उसका विसर्जन करता हूँ। हे देवेश्वर आप कृपा करके संतुष्ट होँ।
महाशिवरात्रि का ब्रत लेने से व्यक्ति सम्पूर्ण पापोँ से मुक्त हो जाता है। जीवन मेँ सुख समृद्धि की वृद्धि होने लगती है। अंधकार समाप्त हो जाता है। सभी मनोकामनाँये पूर्ण हो जाती हैं। अत:कल्याण के इच्छुक सभी मनुष्योँ को यह ब्रत जरुर लेना चाहिए। शिव और औलोकिक रात्रि से ही महाशिवरात्रि का प्रादुर्भाव होता है।
लेखक- अखिलेश चन्द्र चमोला
बिभिन्न राष्ट्रीय सम्मानोपाधियोँ तथा अन्तराष्टीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी अध्यापक रा0इ0का0सुमाडी।

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