कानून-व्यवस्था और भर्तियों में गड़बड़ी को मुद्दा बनाकर कांग्रेस, भाजपा सरकार को घेरने के लिए हंगामा बरपाए हुए थी। लग रहा था विधानसभा सत्र के दौरान सत्तापक्ष की मुश्किलें काफी बढ़ेंगी, लेकिन मामला टांय-टांय फिस्स रहा।
महज दो दिन में ही सत्र निबट गया। सरकार ने महिलाओं को राज्याधीन सरकारी सेवाओं में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण और धर्म स्वतंत्रता विधेयक पारित करा अपना एजेंडा कामयाबी से पूरा कर लिया।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में सरकार का फ्लोर मैनेजमेंट इतना कारगर रहा कि धर्म स्वतंत्रता विधेयक, जिसे लेकर कई महीनों से कांग्रेस के काफी तीखे तेवर दिखे, पर सदन के अंदर पार्टी खामोश बैठी रही।
यह अलग बात है कि सत्र की कम अवधि को लेकर अब कांग्रेस नेता भाजपा को दोष दे रहे हैं। वैसे, कांग्रेस ने दो दिन में कार्य स्थगन सूचनाओं के जरिये दो बड़े मुद्दे जरूर सदन में जरूर उठाए, बस यही उसकी उपलब्धि रही।
भाजपा नेताओं का दिल धक-धक करने लगा
भाजपा नेताओं का दिल एक बार फिर जोर-जोर से धक-धक धड़कने लगा है। दरअसल, आठ महीने बाद ही सही, संकेत मिल रहे हैं कि भाजपा नेताओं की साध मुख्यमंत्री धामी जल्द पूरी कर सकते हैं। उत्तराखंड में मंत्रिमंडल का आकार भले ही 12 से अधिक नहीं हो सकता, लेकिन सत्ता में हिस्सेदारी के अन्य तरीके भी हैं।
सरकारी निगमों, परिषदों, आयोगों के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष पद, जिन्हें मंत्री का दर्जा हासिल होता है। इन्हें दायित्वधारी कहा जाता है। चर्चा है कि कुल 113 नेताओं की किस्मत खुलने जा रही है, यानी ये दायित्वधारी बनने जा रहे हैं।
पहले चरण में 25 से 30 नेताओं का नंबर लगेगा, जिनके नामों को हाईकमान की हरी झंडी मिल गई है। कुछ के चेहरों पर सुकून दिख रहा है, शायद इशारा मिल गया होगा, कई अभी असमंजस में ही हैं। सही बात है, नाम में मंत्री का ओहदा जुडऩे से बढऩे वाली हनक कौन नहीं चाहता।
कांग्रेस चाहे, भगत को दिलाई जाए शपथ
राजनीति चीज ही ऐसी है कि आदत लग गई तो पीछा नहीं छोड़ती। विधानसभा के शीकालीन सत्र में विपक्ष कांग्रेस से प्रीतम सिंह ने सरकार के लिए एक सवाल उछाला, लेेकिन इसके बाद ऐसा कुछ हुआ कि सब ठहाके लगाने लगे।
प्रीतम के सवाल का विभागीय मंत्री जवाब देते, इससे पहले ही भाजपा विधायक बंशीधर भगत ने मोर्चा संभाल लिया। भगत भाजपा के वरिष्ठतम विधायकों में से एक हैं और अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय भी मंत्री रहे हैं।
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का जिम्मा संभाल चुके हैं और धामी के नेतृत्व वाली पिछली सरकार में भी कैबिनेट में थे, लेकिन इस बार उनका नंबर नहीं लगा। विधानसभा की कार्यवाही में भगत इतने तल्लीन हो गए कि याद ही नहीं रहा कि अब वह मंत्री नहीं हैं। प्रीतम भला कैसे मौका चूकते, तड़ से सुझाव दे डाला कि मुख्यमंत्री को भगत को भी मंत्री पद की शपथ दिला देनी चाहिए।